“रटौल आम”
किसान भाइयों ! आज हम किसान संचार
जीरकपुर निकट चंडीगढ़ के सौजन्य से आपको आम की एक सुगन्धित व स्वादिष्ट किस्म के
बारे में जानकारी दे रहें हैं | जी हाँ, हम बात कर रहे हैं उत्तरप्रदेश के
नवनिर्मित जिला बागपत की तहसील खेकड़ा के गाँव रटौल में सैंकड़ों साल पहले सिद्दीकी,
फरीदी और सैय्यद परिवारों द्वारा तैयार की गयी आम की किस्म “रटौल” की |तो सुनिए !
आम की यह नायाब किस्म जो अपनी महक, मिठास और बेमिसाल स्वाद के लिए दुनिया भर में
पसंद की जाती है कैसे उत्तरप्रदेश के बागपत जिले की खेकड़ा तहसील के रटौल गाँव में
विकसित हुई किन्तु इसे विकसित करने का श्रेय पाकिस्तान के किसान ने अपने नाम कर
लिया तथा पाकिस्तान अनेक देशों को इसका निर्यात करके नाम व विदेशी मुद्रा कमा रहा
है |
गांव रटौल के
सिद्दीकी, फरीदी तथा सैय्यद परिवारों से रटौल आम का गहरा रिश्ता है | सन् 1850 में
रटौल गांव के निवासी श्री हकीमुद्दीन अहमद सिद्दीकी जो अंग्रेज सरकार में डिप्टी
कमिश्नर और मजिस्ट्रेट थे सरकारी यात्रा पर जगह-जगह जाते रहते थे | उन्होंने देश
के अलग-अलग हिस्सों से आम की कई किस्मे लाकर रटौल गांव के अपने बाग़ में लगायी | सन्
1920 के आस-पास रटौल के ही मौहम्मद आफाक फरीदी ने आम के एक पेड़ की पत्तियाँ चबाई
तो उन्हें पत्तियों में गाजर का स्वाद लगा | मालूम करने पर पता चला कि आम के उस
बाग़ में पिछले सीजन में गाजर लगायी गयी थी | मोहम्मद फरीदी ने इस आम का कुछ अलग ही
स्वाद चखने पर इसके कुछ पौधे अपने बाग़
में लगा दिए | कुछ पौधे रटौल निवासी सैयद अनवर-उल-हक के बाग़ में रोपे और मोहम्मद फरीदी
इन पौधों
की देखभाल
करने लगे।
जब सैयद
अनवर-उल-हक को
पता चला
तो उन्होंने
तुरंत उस
आम के
पेड़ पर
अपना मालिकाना
हक जताया
और किस्म
का नाम
राटौल रख
दिया।
साथियो! 1947
में देश विभाजन में सिद्दीकी और अनवर-उल-हक
का परिवार
पाकिस्तान चला
गया जबकि आफाक
फरीदी अपने परिवार सहित राटौल में
ही रहते
रहे। पाकिस्तान
के रावलपींडी
शहर में जा बसे आफाक फरीदी ने अपने बचपन के
मित्र कालाबाग नवाब को कुछ आम
उपहार के
तौर पर
भेजे। बंटवारे
के समय
सैयद अनवर-उल-हक
का परिवार
राटौल आम
के पौधे
अपने साथ
पाकिस्तान ले
गया और
वहां पर
इसका बाग
लगाया और
सघन प्रचार-प्रसार
के द्वारा आज ‘अनवर-राटौल’ को दुनिया भर में
प्रसिद्धी दिला दी।
श्रोतागण! आम की राटौल किस्म जो भारत में तैयार हुई लेकिन
इसे तैयार करने का श्रेय तथा आर्थिक लाभ उठाने का अवसर पाकिस्तान को कैसे मिला यह
जानने के लिए श्री अमर शर्मा ने अपने ब्लॉग https://audioboom.com/boos/3392082-
पर बताया
है। राटौल
गांव के
बाशिंदों ने उन्हें राटौल आम की
खासियत इस प्रकार बयान की, कि जब
रटौल आम टपक
कर पेड़
से अपने-आप नीचे
गिरें तो तब उनमें से एक आम को भी यदि किसी कमरे में 12
घंटे
के लिए
बंद कर
दिया जाये
तो 12 घंटे
बाद कमरे
को खोलने
पर ऐसा
प्रतीत होता
है मानो
कमरे में
बहुत ज्यादा
आम रखे
हुए हों
और उस
एक आम
की महक
से ही
पूरा कमरा
महक जाता
है। यही
कारण है
कि राटौल
आम की
खुशबू अन्य
आमों से
भिन्न है।
जामिया मिलिया
इस्लामिया विश्व
विद्यालय के
पूर्व लैक्चरर
और राटौल
गांव में
आम के
बाग के
मालिक साहब
सिद्दीकी ने हमें रटौल आम की खूबियों के बारे में बताया कि मोटी खाल के
लोग आजकल
ज्यादा कामयाब
होते हैं
क्योंकि जो
पतली चमड़ी
या नरम
मिज़ाज़ के
लोग होते
हैं वे
नहीं चल
पाते। इसी
तरह इस
आम का
भी हाल
है क्योंकि
यह आम
नरम मिज़ाज़
का है
| इसलिए ज्यादा
लोगों तक
भी नहीं
पहुँच पाता
और जल्दी
ही खराब
हो जाता
है। उन्होंने
बताया कि
राटौल आम
एक तुखमी
आम है
जो सीधा गुठली
से पैदा
होता है।
राटौल गांव
के बाशिंदे
और दिल्ली
विश्व विद्यालय
के इतिहास
के भूतपूर्व
प्रोफैसर ज़ाहूर
सिद्दीकी जी
बताते है
कि राटौल
आम की
किस्म को
पैदा करने
में दो
आदमियों का
सबसे बड़ा
योगदान रहा,
एक हाकिम-उद-दीन
साहब और
दूसरे उनके
भाई आफताब
सिद्दीकी। राटौल
गाँव में
नूर बाग
और भोपाल
बाग उनके
बहुत मशहूर
बाग हैं वहां
आम की
अलग-अलग
किस्में लगाई
गई है।
लेकिन बड़े
पैमाने पर
नर्सरी के
तौर पर
शेख मोहम्मद
आफाक फरीदी
ने अपनी
नर्सरी में
400 से ज्यादा
किस्म लगाई
थी। प्रोफेसर सिद्दीकी ने बताया कि देश के बंटवारे के बाद अनवर-उल-हक के बड़े बेटे
अबरारुल-हक पाकिस्तान चले गए | अपने पिता के नाम को प्रसिद्ध करने के लिए उन्होंने
राटौल गांव से रटौल आम की लायी गयी किस्म को अनवर राटौल नाम से प्रचारित कर
दिया |
साथियों! भारत
से पाकिस्तान
पहुँचे राटौल
आम के
साथ एक
बेहद दिलचस्प
किस्सा जुड़़ा
है।
पाकिस्तान के
छठे राष्ट्रपति
मोहम्मद जिया-उल-हक
ने एक
बार भारत
की पूर्व
प्रधानमंत्री इंदिरा
गांधी जी
को आम
के फलों
की टोकरी
भेजी। पूर्व
प्रधानमंत्री इंदिरा
गांधी जी
को आम
बहुत अच्छे
लगे और
फिर इन्होंने
पाकिस्तान के
राष्ट्रपति को
आम भेजने
के लिए
धन्यवाद पत्र
लिखा तथा
साथ ही
पत्र में
उन आमों
की किस्म
की प्रशंसा
भी की।
जो तब के प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकशित हुआ |समाचार
पत्रों में ये पढ़कर कि अनवर राटौल आम पाकिस्तान की देंन है, राटौल निवासी जावेद
फरीदी जो राटौल आम के विकास की कहानी के चास्मदीद रहे थे सन्न रह गए | विरोधस्वरूप
उन्होंने दिल्ली जाकर इंदिरा जी से मुलाकात भी
की और
उन्हें समझाया
कि किस
प्रकार यह
किस्म भारत
में विकसित
हुई और
यह वास्तव
में पाकिस्तान
द्वारा स्वयं
विकसित की
गई किस्म
नहीं है।
‘‘जावेद फरीदी
ने कहा
कि यह
सब कुछ
विभाजन के
दौरान हुआ
है।“ उन्होंने
इंदिरा गांधी
जी को
बताया कि
किस प्रकार
बंटवारे के
बाद अनवर-उल-हक
के बड़े
बेटे अबरारूल-हक पाकिस्तान
चले गए
और अपने
पिता के
नाम को
प्रसिद्ध करने
के लिए
इस किस्म
का नाम
‘अनवर राटौल’रखा।राटौल आम
अपनी खुशबू और अनूठे स्वाद के कारण किस कदर लोगों
के दिलों
दिमाग पर
हावी था,
यह राटौल
गांव की
निवासी निशाद
सैय्यदा द्वारा
बताये गये
एक किस्से
से पता
चलता है।
निशाद सैय्यदा
जी ने
बताया कि
बंटवारे के
बाद जब
रास्ते खुले
तो वे
अपनी अम्मी
के साथ
सन् 1953 में
अपने मामाओं
से मिलने
पाकिस्तान गई,
तो हम
बतौर तोहफा
उनके लिये
राटौल आम
की पेटी
ले गये
थे। लाहौर
में हम
अपने चाचा
जी के
पास रूके,
तो जो
आम हम
ले गये
थे वो
लाहौर में
ही खत्म
हो गये।
वहां से जब हम
कराची अपने
मामा के
पास गये तो
मामा जी
अम्मी से
बोले, ‘बहन
कम से
कम तुम
आम की
गुठलियां ही
ले आती
तो हम
उनकी खुशबू
से ही
मुखमिन हो
जाते।’ इस
किस्से से
हमें पता
चलता है
कि किस
कदर राटौल
आम लोगों
द्वारा पसंद
किया जाता
है।
श्रोताओं ! इतनी लोकप्रिय होने के बाद भी हमारे यहाँ आम की इस नायाब किस्म का
फैलाव क्यों नहीं हो पाया इसके बारे में राटौल के स्थानीय
लोगों से
बात करने
पर पता
चलता है
कि मौजूदा
दौर में
बागों के आस पास अनेक भठ्ठे
बन गये
हैं जिससे
बागों के
अस्तित्व को
खतरा पैदा
हो गया
है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के
विस्तार के
कारण जमीनों
के रेट
बहुत अधिक
बढ़ने से भी लोगों का बागों के प्रति रुझान कम हो रहा हैं। बागों के
अस्तित्व पर
लगातार खतरा
मंडरा रहा
है। राटौल
आम के
संरक्षण एवं
प्रोत्साहन के
लिए कुछ
सुझाव निम्नलिखित
हैं :
1. कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केन्द्रों
द्वारा राटौल
आम पर
अनुसंधान प्रोजैक्ट
स्थापित
करके इसके
संरक्षण और
विकास की
दिशा में
कार्य किया
जा सकता
है।
2. उत्तर प्रदेश
सरकार राटौल
आम के
लिए विशेष
जोन घोषित
करने के
बारे में
विचार करके
कोई नीति
बनानी चाहिए।
3. APEDA वाणिज्य मंत्रालय
को मिल
कर विदेशों
में राटौल
आम की
मांग को
पूरा करने
में भारत
की हिस्सेदारी
बढ़ाने की
नीति पर
विचार करना
चाहिये।
4. राटौल आम
की सम्पूर्ण
बागवानी यदि
जैविक ढंग
से होने
लगे और
इसके प्रमाणीकरण
व्यवस्था पर
भी ध्यान
देकर उसे
प्राप्त किया
जाये तो
राटौल आम
के विश्व
व्यापार में
भारत की
हिस्सेदारी बढ़
सकती है।
5. भारत सरकार
के भगौलिक
उपदर्शन एक्ट,
1999 द्वारा स्थापित
भागौलिक उपदर्शन
रजिस्ट्री की
धारा 2(1) के
तहत इसके
पंजीकरण के
प्रयास किये
जाने चाहियें।
6. अभी हाल
ही में
20 मई 2015 को
पारित जिनेवा
कानून जिसका
अभिप्राय लिस्बन
समझौता से
है के
अंतर्गत फलों
के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भागौलिक
उपदर्शन के
पंजीकरण की
व्यवस्था की
जानी चाहिये।
7. राटौल आम
पैदा करने
वाले बागवानों
की एक
प्रोड्यूसर कंपनी
का गठन
कराया जाना
चाहिए।
तो
साथियों हम आशा करते हैं की रटौल आम के विकास व विस्तार के लिए सभी संभंधित
संस्थाएं अपनी ओर से पूरा-पूरा प्रयास करेंगी |
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