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Wednesday, November 25, 2015

Sunflower Cultivation / सूरजमुखी की खेती



सूरजमुखी की खेती
किसान संचार जीरकपुर निकट चंडीगढ़ के सौजन्य से आज हम आपको सूरजमुखी उत्पादन की जानकारी दे रहे हैं | साथियों ! भारत में सोयाबीन,मूंगफली तथा सरसों के बाद सूरजमुखी चौथी मुख्य तेल वाली फसल है | हमारे देश के विभिन्न राज्यों में इसकी खेती की जा रही है | क्योंकि यह तरह-तरह की जलवायु और भूमियों में सुगमता से उगायी जा सकती है |
                     यह एक 75 से 100 दिन की फसल है इसकी उत्पादन क्षमता अधिक है तेल की मात्रा भी इसमें अधिक है तथा इसका बाजार मूल्य भी ज्यादा मिलता है सूरजमुखी का तेल कम कोलेस्ट्राल होने के कारण ह्रदय रोगों से बचाव के लिए  बहुत पसंद किया जाता है | इसके बीजों का उपयोग कन्फैक्सनरी तथा इसकी खली व पौधों का उपयोग पशुओं के लिए किया जाता है |
जलवायु :- सूरजमुखी के जमाव तथा पौधों की शुरुवाती बढ़वार के लिए ठंडा मौसम,फूल आने तक पौधों की बढवार के लिए गर्म मौसम तथा फूल बनने व पकने तक गरम व साफ मौसम उपयुक्त रहता है |
मिटटी :- 6.5 से 8.5 पी.एच मान वाली,अच्छे जल निकास वाली सभी हल्की व भारी मिट्टियों में यह सफलता पूर्वक उगायी जा सकती है |
खेत की तैयारी :- 25 से 30 सेटीमीटर गहरी 1 या 2 जुताई हैरो आदि से करके पाटा द्वारा खेत को तैयार व् समतल कर लें तथा कतार से कतार 60 सेटीमीटर व पौधे से पौधे की दुरी 30 सेटीमीटर रखते हुए वुबाई करें |
संकर किस्में :-
1.KBSH-1 :-  यह अगेती बोये जाने वाली संकर किस्म 90 दिन में पक जाती है इसमें तेल की मात्रा 43 प्रतिशत है तथा औसत उपज 6 कुवंटल प्रति एकड़ है |
2.HSFH-848 :- समय पर पछेती बोई जाने वाली तथा 95 से 100 दिन में तैयार होने वाली संकर क़िस्म है औसत उपज 9 से 10 कुवंटल प्रति एकड़ है | इसमें तेल की मात्रा 40 प्रतिशत है यह रोग रोधी किस्म है | हरियाणा के लिए उपयुक्त संकर किस्म है |
3.ई.सी 68415 :- यह 90 दिन में तैयार होकर 8 कुवंटल प्रति एकड़ उपज देती है | सभी दाने एक साथ पकते हैं | हरियाणा के लिए उपयुक्त है |
4.के.बी.एस.H-44 :- 95 से 98 दिन में पकने वाली तथा 6 से 7 कुवंटल प्रति एकड़ औसत उपज वाली  संकर किस्म है इसमें तेल की मात्रा 36 से 38 प्रतिशत है पूरे भारत में बोने योग्य संकर किस्म है |  
5. के.बी.एस.H-53:- यह संकर किस्म 95 से 100 दिन में तैयार होकर 8 से 11 कुवंटल औसत उपज प्रति एकड़ देती है | इसमें तेल की मात्रा 42 से 44 प्रतिशत है यह कर्नाटक के लिए उपयुक्त संकर है |
6.PSFH-569 :- यह अगेती व् 95 से 100 दिन में तैयार होने वाली संकर किस्म प्रति एकड़ 9 कुवंटल औसत उपज देती है | इसमें तेल की मात्र 40 प्रतिशत है | यह पंजाब के लिए अच्छी है |
7.LSFH-35 (मारुति ) :- यह डॉऊनी मिल्ड्यू रोग के प्रति सहनशील, मध्यम अवधि में पकने वाली तथा 6 से 7 कुवंटल औसत उपज प्रति एकड़ देने वाली संकर किस्म है जिसमें तेल की मात्र 39-41 प्रतिशत है | महाराष्ट्र के लिए उपयुक्त है |
8.DRSH-1 :- यह संकर किस्म 92 से 98 दिन में तैयार होकर 6 से 7 कुवंटल प्रति एकड़ औसत उपज देती है जिसमें तेल की मात्रा 42 से 44 प्रतिशत होती है | और पूरे भारत में उगायी जा सकती है |
बिजाई का समय :-
 वैसे तो सूरज मुखी सभी मौसमों में उगायी जा सकती है किन्तु रबी व बसंत काल इसकी बुवाई के लिए सर्वोत्तम रहता है क्योंकि      इस अवधि में जमाव व छोटे पौधों की बढ़वार के लिए कम तापमान,बड़े होने पर पौधों की बढ़वार तथा फूलों के बनने व दानों के पकते समय अधिक तापमान व खुला मौसम मिल जाता है | जिसके कारण कीड़ों व् बिमारियों का प्रभाव भी कम होता है | मध्य व उत्तर भारत के मैदानों में सूरजमुखी को बोने के लिए 15 जनवरी से 15 फरवरी तक उत्तम समय है |
 परम्परागत क्षेत्रों में खरीफ फसल के लिए हल्की भूमि में 7 जून से 15 जुलाई तथा भारी भूमियों में अगस्त के अन्तिम पखवाड़े में बो सकते है | तथा रबी मौसम में सितम्बर से 15 अक्टूबर तक बोना उचित रहता है |
बीज की मात्रा :-
उन्नत किस्मों का 4 किलोग्राम तथा संकर किस्मों का 1.5 से 2 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ पर्याप्त रहता है |
 बीजोपचार :-
सर्व प्रथम बीज को 4 से 6 घंटे तक साफ पानी में भिगोये फिर इस बीज को छाया में सुखा लें | फिर बीज को 3 ग्राम थीरम या कैपटान प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर लें |
खाद व उर्वरक :-
खाद व उर्वरक मिटटी परीक्षण आधार पर देने चाहिए यदि मिटटी परीक्षण नहीं हुआ तो खेत की तैयारी के समय 10 टन सड़ी गली देशी खाद प्रति एकड़ डालें तथा बुवाई के समय संकर किस्मों में 45 किलोग्राम यूरिया,125 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट प्रति एकड़ अन्तिम जुताई पर डालें |
 शेष 45 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ प्रथम सिंचाई पर डालें |
 सिंचाई :-
प्रथम सिंचाई बोने के 30-35 दिन बाद करें तथा शेष 3-5 सिंचाइयां 12 से 15 दिन के अंतर से आवश्यकतानुसार करनी चाहिए |
निराई-गुड़ाई :-
फसल बोने के तीन व छ: सप्ताह बाद निराई-गुड़ाई करके खरपतवार बाहर निकाल दें |
कटाई :-
जब दानों के छत्ते नीचे की ओर मुड़ कर पीले पड़ जायें तब इन छत्तों को काटकर सुरक्षित स्थान पर रखकर सुखा लें फिर इनसे दाना निकाल लें |
कीटों की रोकथाम :-  
1. कटुआ सुंडी :-इस कीड़ें की सुंडिया निशाचर होती है जो छोटे पौधों को भूमि के पास से काट देती हैं | जिससे पौधे गिरकर सूख जाते हैं | इनकी रोकथाम के लिए 10 किलोग्राम फैनवेलरेट 0.4 प्रतिशत पाउडर का प्रति एकड़ फसल पर बुरकाव करें |
2.बालों वाली सुंडी :- इसकी छोटी छोटी सुंडियां समुह बनाकर एक ही पत्ती को खाती हैं बाद में ये बिखरकर पूरे खेत में फैल कर पत्तियों को खाती है अधिक आक्रमण के समय मुलायम तनों व फूल के झुम्पे को भी खा लेती हैं |
        इन सुंडियों की रोकथाम के लिए 500 मिलीलीटर क्वीनलफास 25 ई.सी या 200 मिलीलीटर मोनोक्रोटोफास 36 SL को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ स्प्रे करना चाहिए | 
3.फूल छेदक सुंडी :- ये सुंडियां कोमल पत्तों को काटकर तथा फूलों में छेद करके फसल को हानि पहुंचाती हैं | जब प्रति पौधा 1 सुंडी मिले तब 600 मिलीलीटर क्वीनलफास 25ई.सी को 200 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ छिड़काव करना चाहिए |
4.पक्षियों से हानि :- कबूतर व कौए बीज को मिटटी में से निकाल कर खा जाते हैं तो तोते पके हुए फूलों से दानों का निकालकर खा जाते हैं | कभी-कभी तोते फूलों को कुतर कुतर कर खाते हैं | ये पक्षी सूरज मुखी में नुकसान न करें इसके लिए स्थानीय यांत्रिक विधियों का ही प्रयोग प्रभावी रहता है |
बिमारियों की रोकथाम :-
1.अल्टरनेरिया ब्लाइट :- पत्तियों पर काले ,गोल व अंडाकार धब्बे बनते हैं | बाद में इनका आकार बढने से पत्ते झुलस जाते हैं | इन धब्बों में गोल छल्ले भी दिखते हैं |
2.फूलगलन :- फूल बनने पर फूलों के पिछले भाग पर हल्का-भूरे रंग का धब्बा बनता हो जो बढ़ते फूल के अधिकांश भाग में फैल जाता है और फूल गल जाते हैं कभी-कभी ये धब्बा फूल के डंठल पर बनकर उसे गला देता है और फूल गल जाते हैं तथा फूल लटककर टूट जाता है जिसमें दाने भी नहीं बनते |
आल्टरनेरिया व्लाईट तथा फूल गलन की रोकथाम के लिए 400 ग्राम डाइथेन M-45 को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ स्प्रे करना चाहिए |

3.जड़ व तना गलन :- सबसे पहले हल्के-भूरे रंग का धब्बा भूमि की सहत के पास तने पर आता है जो बाद में तने पर नीचे व ऊपर की और फैल जाता है | इसके प्रभाव से जड़ व तने काले पड जाते हैं और पौधे सूख जाते हैं | फूलों में दाने बनते समय अक्सर यह बीमारी आती है | इसकी रोकथाम के लिए पहले बताया गया बीजोपचार करें | फसल में जल अधिक ना रुकने दें तथा उचित फसल चक्र अपनायें | 

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