लहसुन की खेती
किसान भाइयों ! आज हम किसान संचार जीरकपुर निकट चंडीगढ़ के
सौजन्य से आपको लहसुन की खेती करने बारे जानकारी दे रहें हैं |आप जानते ही हैं कि लहसुन हमारी रसोई में मसाले के रूप में
उपयोग होने के साथ ही अनेक आयुर्वेदिक दवाओं में भी प्रयोग किया जाता है | यह एक
नकदी फसल है | वहीं कुछ लोग धार्मिक मान्यता के कारण भोजन में लहसुन का उपयोग नहीं
करते | हमारे देश के कई राज्यों में इसकी खेती की जाती है | समुद्रताल से 100 से
130 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इसकी सफलता पूर्वक खेती की जाती है | ठंडा मौसम
लहसुन की अच्छी उपज के लिए अच्छा रहता है | मध्य व उत्तर भारत के मैदानी भागों की
मध्यम काली उपजाऊ मिटटी तथा अच्छे जल निकास वाली ह्यूमस से भरपूर दोमट मिटटी में
लहसुन की बहुत अच्छी पैदावार मिलती है मिटटी का पी.एच मान 6 से 7 तक होना चाहिए |
किस्में :-
लहसुन की उन्नत किस्में है गोदावरी,स्वेता,G-1,HG-6,Pusa
sel-10,LCG-1,ARU-52,एग्रीफाउंड व्हाईट ,यमुना सफ़ेद और यमुना सफ़ेद-2 | G-282 तथा
एग्रीफाउंड पार्वती के अलावा सभी किस्मों के बल्वों में छोटे आकार की 20-30 कलियाँ
रहती है | G-282 व एग्रीफाउंड पार्वती के बल्व व कलियाँ बड़े आकार के होते है |
एग्रीफाउंड सफ़ेद,यमुना सफ़ेद तथा यमुना सफ़ेद-2 किस्में व्यापारिक खेती के लिए
उपयुक्त हैं |
बिजाई समय :- लहसुन की बुवाई के लिए सितम्बर के
अन्तिम सप्ताह से पूरे अक्टूबर माह का समय उपयुक्त रहता है |
खेत की तैयारी :- पर्याप्त नमी युक्त खेत में 20
टन गोबर की खाद डालकर 3-4 जुताई करके खेत को तैयार व समतल कर लें | खेत को
क्यारियों में बाँट कर सिंचाई हेतु नालियां तैयार कर लें अन्तिम जुताई पर 35 किलोग्राम यूरिया 125 किलोग्राम,सिंगल सुपर फास्फेट
तथा 15 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति एकड़ मिटटी में मिलायें | शेष 35
किलोग्राम यूरिया बिजाई के 30-45 दिन बाद दें |
बिजाई विधि :- लाइन से लाइन 15 सेटीमीटर व
कली से कली के बीच 8-10 सेटीमीटर का फांसला रखकर 5 से 6 सेटीमीटर गहरी बिजाई करें किन्तु
कलियों का नुकीला भाग ऊपर की ओर रखे तथा कलियों को 2 सेटीमीटर गहरी मिटटी से ढक
दें |
सिंचाई :- सर्दियों में 10-15 दिन के
अन्तराल पर किन्तु मार्च के बाद प्रति सप्ताह सिंचाई जरूरी है | किन्तु बल्वों के
पकते समय सिंचाई बंद करें |
निराई गुड़ाई :- यदि खेत में खरपतवार अधिक जमते
हैं तो लहसुन की बिजाई से पहले 500 ग्राम फ्लुक्लोरालिन को 250 लीटर पानी में
घोलकर प्रति एकड़ मिटटी पर छिड़काव करें |अन्यथा लहसुन की फसल में 2-3 बार उथली गुड़ाई करके खरपतवार निकालें |
कटाई :- लहसुन की गांठों के पूर्ण आकार
लेने पर तथा पतियों में पीला पन आने पर सिंचाई बंद कर दें और इसके कुछ दिन
बाद खुदाई करें | खुदाई के बाद कन्दों को
3-4 दिन छाया में सुखायें और पत्तियों को गर्दन से 2-3 सेटीमीटर छोड़कर काट दें या
25 से 50 गांठों की पत्तियों को बांधकर बन्डल बना लें |
भण्डारण :- लहसुन का भण्डारण पौधों के
बण्डल बनाकर या गांठों को टाट की बोरियों में भरकर शुष्क व हवादार एवं अंधेरे कमरे
में करें |
लहसुन में कीट नियंत्रण :- लहसुन में थ्रिप (चुरडा) कीट द्वारा
रस चूसने से पत्तियों पर पीले,भूरे सफ़ेद धब्बे पड़ते हैं और पत्ते मुड जाते हैं |
अधिक प्रकोप होने पर पत्ते चोटी से चांदी नुमा होकर सूख जाते हैं | इस कीट की
रोकथाम के लिए पहला छिड़काव 75 मिलीलीटर फैनवेलरेट 20 ई.सी दूसरा छिड़काव 300
मिलीलीटर मैलाथियान 50 ई.सी तीसरा छिड़काव 175 मिलीलीटर साईपरमैथरीन 10 ई.सी तथा चौथा छिड़काव पुन: 300 मिलीलीटर
मैलाथियान 50 ई.सी को 200 से 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ करें |
लहसुन में रोग नियंत्रण :- लहसुन का मुख्य रोग है पर्पल
ब्लाच,इसके कारण फूलों की डंडियों और पत्तियों पर जामुनी या गहरे भूरे धब्बे बन
जाते हैं जो फसल को हानि पहुंचाते है | इस रोग के लगने पर 400 से 500 ग्राम इंडोफिल एम.45 या कापर ऑक्सीक्लोराईड को
250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें | यदि आप बिना कोई रसायन
प्रयोग किये धान का सुरक्षित भण्डारण करना चाहते हैं तो सूझ बूझ पत्रिका के
जुलाई-सितम्बर 2008 अंक में छपा यह नुस्खा अपनाकर देखें धान को अच्छी तरह साफ करके
सुखा लें तथा साफ सुथरे टाट के बोरों में भरने से पहले एक चम्मच लाल मिर्च का
पाउडर प्रति 50 किलोग्राम धान में मिला लें | अब इन धान के बोरों को सूखे व साफ
लकड़ी के पटरों पर बंद भंडार में रखें मिर्च का पाउडर ऐसी गन्ध छोड़ता है जिससे
बीजों को हानि पहुंचाने वाले कीट पास भी
नहीं आते | यह उपचार 5-6 माह तक प्रभावी रहता है |
जो
किसान भाई जैविक ढंग से कीड़ों व बीमारियों का निदान करना चाहते हैं वे हमारे किसान संचार कार्यलय के टेलीफ़ोन नंबर पर 9017653200 फिर सुनिये 9017653200 पर सोमवार से शनिवार सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक बात करके जानकारी
प्राप्त कर सकते है |
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