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Wednesday, December 9, 2015

Organic farming of bottle gourd / लौकी की जैविक खेती



ऐसे करें लौकी की जैविक खेती
किसान भाइयों और बहनों नमस्कार ! किसान संचार जीरकपुर निकट चंडीगढ़ की टीम आज आपके लिए लेकर आयी है रेडियो वार्ता “ऐसे करें लौकी की जैविक खेती”किसान भाइयों ! आज हम किसान संचार जीरकपुर निकट चंडीगढ़ के सौजन्य से आपको बताने जा रहे हैं कि आप भी रसायनिक उर्वरकों तथा रसायनिक कीट नाशियों पर से अपनी निर्भरता को कम करते हुए स्थानीय और विशेषकर स्वयं तैयार किये जैविक खादों व जैविक कीट नाशियों का अधिक से अधिक उपयोग करके किस तरह जैविक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं | इसी क्रम में आज प्रस्तुत है लौकी की जैविक खेती कैसे करें |लौकी एक बहुपयोगी फसल है इसके कच्चे फलों से सब्जियां,जूस व विभिन्न प्रकार की मिठाइयां तैयार की जाती हैं | सूखे फलों के खोल मछली पकड़ने के तैरने वाले जाल तैयार करने,तरह-तरह के बर्तन व वाद्ययंत्र आदि बनाने में प्रयोग किये जाते हैं | कच्ची लौकी के गूदे में प्रचुर मात्रा में रेशा रहित कार्बोहाइड्रेट मिलता है | लौकी के बीजों का तेल बालों के तेल में प्रयोग किया जाता है |
                        लौकी की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश,पंजाब,गुजरात,आसाम,मेघालय और राजस्थान में की जाती है | वैसे सभी तरह की मिटटी इसकी खेती के लिए उपयुक्त हैं किन्तु अधिक अम्लीय व क्षारीय  मिटटी को छोड़कर रेतीली मिटटी सर्वोत्तम रहती हैं जीवाश्म की पर्याप्त मात्रा के साथ-साथ जल निकास का भी उचित प्रबंध होना चाहिए | मिटटी जनित रोगों से बचाव के लिए एक ही खेत में लगातार लौकी नहीं उगानी चाहिए |लौकी की उचित बढ़वार तथा अधिक फल उत्पादन के लिए रात का तापमान 18 से 22 डिग्री सेल्सियस तथा दिन का तापमान 30-35 डिग्री सेल्सियस तक अच्छा माना जाता है |
आप आगे बताई जा रही किस्मों में से सुविधा अनुसार किस्मों का चुनाव कर सकते हैं |
उन्नत किस्में :-
1.अरका बहार :- इसके कच्चे फल सीधे लम्बे,मध्यम आकार वाले लगभग 1 किलोग्राम वजनी व हरे होते हैं यह अधिक उपज देने वाली किस्म है |
3.क्ल्याणपुर हरी लम्बी :- यह किस्म भी गर्मी व बरसात दोनों मौसम के लिए उपयुक्त है इसके कच्चे फल लम्बे व गहरे हरे रहते है औसत पैदावार 100 कुवंटल प्रति एकड़ है |
4.एन.डी.बी.जी-1 :- इसके कच्चे फल समान आकार के लम्बे व हल्के हरे तथा नीचे से कुछ मुड़े हुए होते हैं यह बसंत कालीन या गर्मी के मौसम के लिए उपयुक्त है | औसत पैदावार 100 कुवंटल प्रति एकड़ देती हैं |
5.पूसा समर प्रोलीफिक राउंड :- यह किस्म भी गर्मी व बरसात दोनों मौसम के लिए उपयुक्त  है इसमें फल काफी लगते है और बेलों की बढ़वार काफी होती है | कच्चे फल 15-18 सेटीमीटर घेरे के गोल व हरे होते हैं |
6.पंजाब कोमल :- यह शीघ्र फल देने वाली किस्म है जो प्रति पौधा 10-12 फल देती है कच्चे फल का वजन 600 ग्राम रहता है | बोने के 70 दिन बाद फल देने लगती है यह मोजेक रोग के प्रति सहनशील किस्म है |
7.पंजाब लौंग :- इसके कच्चे फल लम्बे कोमल हल्के हरे रंग के व सुंदर होते हैं यह किस्म 180 कुवंटल प्रति एकड़ औसत उपज देती है |
8.पंजाब गोल :- इस किस्म के कच्चे फल सुंदर,गोल,कोमल व हरे रंग के होते है यह पंजाब के लिए अच्छी किस्म है |
10.पूसा समर प्रोलीफिक लौंग :- इसके कच्चे फल लम्बे,एक समान,हल्के हरे होते है यह गर्मी व बरसात दोनों मौसम के लिए उपयुक्त किस्म है | जो 125 कुवंटल प्रति एकड़ उपज देती है |
11.पूसा मंजरी :- यह अधिक पैदावार देने वाली संकर किस्म है | इसके कच्चे फल लम्बे, हल्के हरे,मुलायम व आकर्षक होते हैं यह बसंतकालीन बुवाई के लिए उत्तम है |
12.पूसा मेघदूत :- यह भी अधिक पैदावार देने वाली संकर किस्म है जो शीघ्र फल देने लगती है | यह बसंतकालीन व गर्मी की बुवाई के लिए अच्छी है | इसके कच्चे फल लम्बे, हल्के हरे,मुलायम तथा आकर्षक होते हैं |
13.पूसा नवीन :- यह गर्मी व बरसात दोनों मौसम के लिए अच्छी है | शिवालिक पहाड़ियों,बिहार व मध्य प्रदेश में बरसाती बुवाई के लिए भी अच्छी है | इसके कच्चे फल सीधे,बेलनाकार व हरे होते है | फल की लम्बाई 1 फिट तथा वजन लगभग 850 ग्राम रहता है |
भूमि की तैयारी :- बोने से 3-4 सप्ताह पहले खेत में 20 टन कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद, 10 किलोग्राम नीम की खली व 15 किलो अरंडी की खली प्रति एकड़ डालकर एक जुताई हेरो से,3 क्रास जुताई कल्टीवेटर से करके व पाटा लगाकर खेत को समतल कर लें और फिर 2 से 2.5 मीटर के अंतर से 40-50 सेटीमीटर चौड़ी नालियां खेत में बना लें |
बीज की मात्रा :- लौकी का 1.5 से 2 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ पर्याप्त रहता है |
बोने का समय :- बसंतकालीन फसल के लिए जनवरी,ग्रीष्म कालीन फसल के लिए फरवरी से मार्च तथा वर्षा कालीन फसल के लिए जून से जुलाई तक समय बुवाई के लिए ठीक रहता है |
बोने की विधि :- बीज को 24 से 48 घंटे तक साफ पानी में डुबोयें | पानी में तैर जाने वाले बीजों को न बोयें | पानी में बैठे बीजों को निकालकर फरेरा करने के बाद पहले बनायी गयी 2 से 2.5 मीटर फासले वाली कतारों में 1 से 1.5 मीटर के फासले पर बीज बोयें यानि पौधे से पौधे के बीच  1 से 1.5 मीटर का अंतर रखकर बुवाई करें | ध्यान रखें कि गर्मी की फसल का बीज बरसाती फसल के लिए उपयोग न करें |नदियों के किनारे कछारी मिटटी में 1 मीटर गहरी और 60 सेटीमीटर चौड़ी नालियां बनाई जाती है | खुदाई करते समय ऊपरी आधी बालू का एक ढेर लगा लिया जाता है | आधी बालू को खोदकर उससे नालियों को लगभग 30 सेटीमीटर तक भर देते है इन्ही नालियों में 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर छोटे-छोटे थाले बनाकर बसंतकालीन फसल के लिए जनवरी में लौकी के बीज बोयें | दो नालियों के बीच 3 मीटर का फांसला रखना चाहिए | पौधो को पाले से बचाने के लिए उत्तर पश्चिमी दिशा में फूस की बाड़ लगानी  चाहिए |
उर्वरकों का प्रयोग :- बहुत अच्छा होगा यदि मिटटी परीक्षण के आधार पर उर्वरकों की मात्रा दी जाय | यदि यह संभव नहीं है तो 20 किलोग्राम यूरिया,60 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 16 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश को प्रति एकड़ की दर से उन स्थानों पर समान मात्रा में मिटटी में  मिला दें जहाँ लौकी के बीज बोने हैं | शेष बचे 20 किलोग्राम यूरिया में से 10 किलोग्राम मात्रा एक महीने की फसल होने पर तथा 10 किलोग्राम मात्रा फूल आने की अवस्था पर पौधों की जड़ों के आस-पास डाल कर हल्की सिंचाई व निराई-गुड़ाई कर दें | तथा जड़ों पर मिटटी चढ़ा दें |
सिंचाई :- बसंतकालीन बोयी गयी फसल में प्रति सप्ताह सिंचाई जरूरी है लेकिन बरसात के मौसम की फसल में सिंचाई वर्षा को देखते हुए ही करनी चाहिए | हाँ गर्मी में बोयी गयी फसल में 8 -9 दिन के अन्तर से सिंचाई करें |
खरपतवार नियंत्रण :- फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना भी आवश्यक है इसके लिए फसल में 3 से 4 बार हल्की निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को न पनपने दें तथा बेलों की जड़ों पर मिटटी चढ़ाये |
कीट नियंत्रण :-
लालड़ी :- इस कीट के प्रोढ़ पीले रंग के और चमकीले होते हैं तथा इसकी सुंडियां (लट ) क्रीम रंग की होती है | लौकी फसल के पौधों में 2 पत्तियां बनते ही इसकी प्रौढ़ सुंडियां पत्तों में गोल सुराख करती है | ये सुंडियां जमीन के भीतर लौकी की जड़ों को काट देती हैं जिससे पूरा पौधा सूख जाता है | मार्च से अगस्त माह तक यह कीट भारी नुकसान करता है |तो लीजिये ऊपर बताये गये सभी कीटों से अपनी लौकी फसल की रक्षा के लिए स्वयं तैयार कीजिए  जैविक नुस्खा और इस नुस्खे का प्रभावित फसल पर छिड़काव करके कीटों का नियंत्रण करें तथा लौकी का जहर रहित जैविक व पौष्टिक उत्पादन पायें |
जैविक नुस्खा व उसकी प्रयोग विधि इस प्रकार है |
ताम्बे के एक बड़े बर्तन में 40-50 दिन पुराना 15 लीटर गौमूत्र व 5 किलोग्राम धतूरा की पत्तियों को तब तक उबाले जब तक गौमूत्र की मात्रा आधी रह जाय अब इसे आंच से उतार कर ठंडा करके छान लें | तथा छने हुए तरल मिश्रण की 3 लीटर मात्रा प्रति 15 लीटर पानी की दर से लौकी की कीट प्रभावित फसल पर इस तरह छिड़के जिससे पौधों के सभी भाग अच्छी तरह भीग जाएँ |  12 से 15 दिन के अंतर पर इस मिश्रण का छिड़काव करते रहें | इस मिश्रण के छिड़काव से कीट नियंत्रण के साथ-साथ पौधों को पोषण भी मिलता है साथ ही मृदुरोमिल फफूंदी से भी फसल का बचाव हो जाता है |
एन्र्थेक्सनोज रोग :-  इस रोग के कारण पत्तियों व फलों पर लाल-काले धब्बे बन जाते हैं जो बाद में परस्पर मिल जाते हैं यह बीज जनित रोग है  बोने से पहले लौकी के बीज का कुछ देर गौमूत्र या नीम के तेल से उपचार कर लेने से इस रोग की काफी हद तक रोकथाम हो जाती है |
लौकी की पैदावार :- जनवरी से मार्च तक बोयी फसल से औसतन 80 से 100 कुवंटल तथा जून से जुलाई में बोयी गयी फसल से औसतन 150 से 200 कुवंटल प्रति एकड़ लौकी के कच्चे फल प्राप्त हो जाते हैं | तो श्रोतागण ! कीटों व बीमारियों से लौकी फसल को बचाने के लिए बताये गए इन जैविक उपायों को आजमा कर अवश्य देखिये तथा सार्थक परिणाम मिलने पर अपने अन्य साथी किसानों को भी प्रेरित कीजिये | किसान भाइयों और बहनों ये थी किसान संचार की ओर से प्रसारित आज की रेडियो वार्ता ऐसे करें लौकी की जैविक खेती इसके बारे में आप अपनी प्रतिक्रिया हमारे ईमेल kisansanchar@gmail.com पर भेज सकते है | आप हमारे youtube channel पर जा कर यह कार्यक्रम और अन्य दूसरे कार्यक्रम सुन सकते हैं और खेती बाड़ी से जुड़े अन्य रोचक विडियो भी देख सकते हैं | आप facebook.com/kisansanchar पर जा कर भी हमसे जुड़ सकते हैं या प्रतिक्रिया भेज सकते हैं | आज की इस रेडियो वार्ता को तैयार करने में सहयोग रहा हमारी टीम की रूबी,निशा कौशिक और गोपाल सिंह का और इस कार्यक्रम के संपादक थे श्री सुरेन्द्र सिंह धनखड़ | किसान भाइयों और बहनों अधिक जानकारी के लिए आप हमारे हेल्पलाइन नंबर 09017653200 पर सोमवार से शनिवार सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक फोन करके जानकारी प्राप्त कर सकते है |

लौकी की जैविक खेती की लेखन सामग्री भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नयी दिल्ली तथा kisan help.in से प्राप्त की गयी है जिसके लिए हम इन सभी स्रोतों का आभार प्रकट करते हैं | 

1 comment:

  1. If urea, super phosphate and potash is used than how it is organic farming. Kindly clarify.

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