भारत में औषधीय पौधों की जानकारी चिकित्सा के क्षेत्र में वैदिक काल से ही परम्परागत रूप से चली आ रही है | औषधीय फसलों का उपयोग विभिन्न बीमारियों के ईलाज में होता है साथ ही इनसे आर्थिक लाभ अर्जित किया जा सकता है | विश्व की 65 से 80 प्रतिशत आबादी अपनी स्वास्थ्य रक्षा हेतु प्राकृतिक/हर्बल उत्पादों पर झुकाव एवं निर्भरता रखती है | सौन्दर्य प्रसाधन तथा खाद्य पदार्थों में इनका उपयोग होता है | विश्व व्यापार से हर्बल उत्पादों के भाग में बढ़ोतरी के कारण औषधीय फसलों की खेती के लिए लोगों में झुकाव बढ़ा है | वनों से प्राप्त वनौषधियों के लगातार दोहन के साथ-साथ राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मांग बढ़ती जा रही है तथा प्राकृतिक स्त्रोतों की उपलब्धता कम होती जा रही है | इस सम्पदा के विदोहन को रोकने के लिए संरक्षण,संवर्धन एवं इनकी व्यावसायिक खेती करके राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय स्तर पर मांग की आपूर्ति की जा सकती है | इस व्यावसायिक दृष्टिकोण को ध्यान रखते हुए औषधीय पौधों के उत्पादन की उन्नत कृषि प्रौद्योगिकी एवं प्रंसस्करण संबधित संक्षिप्त जानकारी किसानों को दी जा रही है |
सर्पगंधा फसल का उपयोग व
खेती की विधि:- सर्पगंधा की जड़ों का
उपयोग औषधी के रूप में मस्तिष्क संबंधी रोगों,मिरगी,उच्च रक्तचाप तथा अनिद्रा में
होता है |
बलुई दोमट मिटटी इसके लिए
अच्छी मानी जाती है | मई का माह नर्सरी लगाने हेतु व जुलाई माह में खेतों में पौध
रोपने के लिए उपयुक्त रहता है | बुवाई/रोपाई हेतु प्रति हेक्टेयर 5 से 7 किलोग्राम
बीज या 100 किलोग्राम ताज़ी जड़ों की आवश्यकता
होती है | प्रति हैक्टर 10 से 12 क्विंटल सूखी जड़े प्राप्त होती है |
सर्पगंधा की खेती के बारे में जानने के लिए निचे दिए गए विडियो के लिंक पर क्लिक करें |
Video link: https://www.youtube.com/watch?v=dEPRdaANBOI
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