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Thursday, October 27, 2016

फालसा की उन्नत खेती कैसे

फालसा की कोई भी निश्चित किस्म उपलब्ध नहीं है | दोनों प्रकार की किस्में हिसार व दक्षिण पश्चिम हरियाणा क्षेत्र के लिए मान्य हैं बौनी किस्म की जाति अधिक उपज देने वाली है और इसके फल भी अधिक रस वाले होते है |
लगाने (रोपने) का समय:- नर्सरी में लगे हुए पौधे,जिमें सुप्तावस्था में आने से फ्ल्ले काफी वृद्धि हो चुकी हो,फरवरी के महीने में खेत में रोप देने चाहिए | इसका मुख्य लाभ है | जड़ों के साथ मिटटी की जरूरत का न होना | वर्षा के मौसम में रोपते समय गाछी का होना जरुरी है |
मिटटी:- शुष्क क्षेत्रों में जहाँ पर मिटटी उपजाऊ नहीं है तथा जिसमें अन्य फलदार पौधे नहीं उगाए जा सकते हों,वहां उपयुक्त है |
प्रवर्धन:- इसके पौधे बीज द्वारा तैयार करते हैं अंकुरित पौधे शुद्ध किस्म के होते है नर्सरी में उगाने के लिए ताजा बीजों का चुनाव करना चाहिए | यदि हम बीज का खुले में भण्डारण करते हैं तो उसके उगने की क्षमता 90-100 दिन तक रहती है | और यदि शीतगृह में रहते है तो उसके उगने की क्षमता 6 महीने तक रहती है | बीज को उगने के लिए 15-20  दिन और रोपित करने के लिए 3-4 महीने की आवश्यकता होती है |
फालसा ;- पौधों को रोपते समय कतार से कतार एवं पौधे से पौधे का 1.5 से 2.0 मीटर का फासला उचित माना गया है |
कटाई-छंटाई:- फालसा की खेती में कटाई-छंटाई का विशेष महत्व है | लम्बी किस्म के लिए कटाई-छंटाई जमीन से 0.9-1.2 मीटर ऊंचाई पर एवं बौनी किस्म के लिए जमीन से 40-60 सेटीमीटर की ऊंचाई पर उचित है दिसम्बर-जनवरी के महीनों के जब पौधा सुशुप्त अवस्था में होता है |
सिंचाई:- फालसा में प्रथम सिंचाई,खाद डालने के बाद,फरवरी के दूसरे-तीसरे सप्ताह में की जाती है | मार्च-अप्रैल में सिंचाई 20-25 दिन के अन्तर पर करनी चाहिए और मई के महीने में इस अन्तर को घटाकर 15-20 दिन का देना चाहिए |

कीट नियंत्रण:-
पत्ते खाने वाले भुंडीया
बालों वाली सूण्डी
रोग नियंत्रण :-
भूरे धब्बों का रोग:- इस रोग के कारण वर्षा के मौसम में पत्ते पूर्ण वृद्धि से पहले ही गिर जाते हैं | प्रारम्भ में पत्तों पर छोटे-छोटे धब्बे बनते हैं जो पत्तियों की दोनों सतह पर दिखाई देते है जो बाद में आकार में बड़े दिखाई पड़ते है |

नियंत्रण एवं सावधानियां :- रोकथाम के लिए मैंकोजेब 0.3 प्रतिशत के घोल का छिडकाव करें |

रतुआ :- हल्के भूरे रंग के फफोले पत्तियों की निचली सतह पर बनते है | रोग से प्रभावित पत्तियां सूखकर गिरने लगाती हैं | यह रोग दस्तुरेल्ला ग्रेवी नामक कवक द्वारा होता है |
इसकी रोकथाम के लिए मैंकोजेब  के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव 15 दिन के अन्तर पर करें |
फालसा  की खेती के बारे में जानने के लिए निचे दिए गए विडियो के लिंक पर क्लिक करें |




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