आलू की अगेती खेती
किसान भाइयों
आज हम किसान संचार जीरकपुर,चंडीगढ़ के सौजन्य से आपको आलू की अगेती खेती करने की
जानकारी दे रहे है | आप जानते ही हैं कि जब कोई सब्जी की फसल जल्दी बाजार में आती
है तो वह काफी ऊँची कीमत पर बिकती है जिससे उत्पादक को अच्छा लाभ प्राप्त हो जाता
है इसलिए आप भी अपनी आलू की फसल से अच्छा लाभ लेना चाहते हैं तो आलू की अगेती
बुवाई 15 सितम्बर से 10 अक्टूबर तक पूरी कर लें |
आलू दुनिया भर
में खायी जाने वाला प्रमुख खाद फसल है इसे गरीबों का मित्र भी कहा जाता है सब्जी
के रूप में यह भारत की मुख्य फसल है जिसे सस्ता भोजन भी कह सकते हैं आलू हमारे लिए भोजन में सस्ती ऊर्चा स्त्रोत् का
है यह स्टार्च व विटामिन्स सी,बी-1 तथा खनिजों से लबरेज है आलू में 20.6 प्रतिशत
कार्बोहाइड्रेटस 2.1 प्रतिशत प्रोटीन0.3,वसा,1.1 प्रतिशत कच्चा रेशा तथा 0.9
प्रतिशत ऐश तथा प्रचुर मात्रा में ल्यूसिन,ट्रिप्टोफेन और आइसोल्यूसिन नामक
अमीनोअम्ल मिलते हैं | आज आलू का उपयोग,लांडरी,टैक्सटाईल,स्टार्च,एलकोहल व ग्लूकोज
उद्योग के साथ-साथ खाद उद्योग में तैयार
होने वाले चिप्स और स्लाईस के लिए भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है |
आलू
ठन्डे मौसम की फसल है इसकी बढ़वार व विकास
के लिए 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तामपान उत्तम माना जाता है 21 डिग्री सेल्सियस
तामपान तक इसके कन्दों का बहुत अच्छा विकास होता है | आलू की बढ़वार के लिए लम्बे
दिन तथा कन्दों के बनने व विकास के समय छोटे दिनों का होना उत्तम है जो उत्तर भारत
के मैदानी क्षेत्रों में अनुकूल स्थिति है | साथियों वैसे तो आलू सभी प्रकार की
भूमियों में उगाया जा सकता है | लेकिन हल्की रेतीली दोमट मिटटी सबसे अच्छी रहती है
| जो अच्छे जलनिकास तथा 5.5 से 7.5 PH मान वाली हों | मध्य व उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में
अगेती बुवाई के लिए आलू की कुफरी चंद्रमुखी किस्म बुवाई के 75 दिन के बाद खोदने पर
80 कुवंटल तथा 90 दिन बाद खोदने पर 100 कुवंटल प्रति एकड़ उपज देती है | इसके आलू
चमकीले चपटे,सफ़ेद पीले गूदे व चपटी आखों वाले होते हैं | कुफरी जवाहर भी अगेती है
इसकी उपज कुफरी चंद्रमुखी से अधिक है इसके आलू गोल,अंडाकार,चमकीले,सफ़ेद छिलके व
गूदे वाले होते हैं | बुवाई के 90 दिन बाद खोदने पर 100 से 105 कुवंटल प्रति एकड़ उपज देती है | इनके अलावा
कुफरी अशोका बिहार,पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के लिए उपयुक्त हैं | अच्छी उपज लेने के लिए आवश्यक है कि बीज हमेशा
विश्वसनीय स्त्रोत् जैसे राज्य बीज विकास निगम,बागवानी विभाग या नजदीकी कृषि
विश्वविधालय आदि से ख़रीदा जाय | यह भी ध्यान रखे की आलू का बीज 3-4 साल बाद बदल
दें ताकि बीमारियों के विस्तार से बचा जा सके | कुल उत्पादन खर्च की अच्छी राशि
केवल बीज खरीदने पर ही खर्च होती है | आलू बुवाई के लिए चुने गये खेत का पलेवा
करने के बाद उसमें 20 टन प्रति एकड़ की दर से गोबर की खाद डालकर 3-4 गहरी जुताई व
पाटा करके मिटटी को भुरभुरी बनाकर समतल कर लें | जहाँ तक आलू के बीज की मात्रा की
बात है तो यह बीज के कन्दों के आकार पर निर्भर करती है | 2.5 से 5.5 सेटीमीटर आकार
और 25 से 70 ग्राम वजन के बीज सबसे अच्छे रहते हैं | इसके बाद 3.5 से 4 सेटीमीटर
बड़े और 45 से 50 ग्राम के कन्द बोना भी अच्छा है | अधिक उपज के लिए 30 ग्राम के
कन्दों का 10 से 12 कुवंटल तथा 45 ग्राम के कन्दों का 12-15 कुवंटल बीज एक एकड़ के
लिए पर्याप्त रहता है | इन कन्दों को 50 से 60 सेटीमीटर दूरी पर बनी डोलियों के
ऊपर कन्द से कन्द का 20 सेटीमीटर फासला रखकर बोयें | आलू के बीज को बुवाई के 8-10 दिन पहले शीतग्रह से निकालकर
टोकरियों या क्रेट्स में डालकर खुले,ठन्डे,रोशनीदार व हवादार स्थान पर अंकुरण के
लिए रखें | जिन कन्दों का अंकुरण कम हो या उन पर बाल हो उन्हें बीज से अलग कर
दें | अब आलू के लिए तैयार खेत में मिटटी परीक्षण रिपोर्ट के अनुरूप उर्वरक दें
यदि मिटटी परीक्षण नहीं करा सके तथा मिटटी चिकनी दोमट,दोमट या वलुई दोमट है तो 110
किलोग्राम यूरिया,125 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 65 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़
पोटाश बुवाई के समय डालें किन्तु मिटटी हल्की व रेतीली है तो 82 किलोग्राम यूरिया सिंगल
सुपर फास्फेट व म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की पूरी मात्रा सहित बिजाई के समय तथा शेष 28 किलोग्राम
यूरिया बुवाई के 25-30 दिन बाद मिटटी चढाते समय छिटके |
यदि सम्भव हो तो साबुत आलुओं की ही बुवाई करें
इन आलुओं/कन्दों को या कटे हुए कन्दों को 250 ग्राम एरीटान या टेफेसान मिले 100
लीटर पानी के घोल में 15-20 मिनट तक उपचारित करने के बाद ही बोयें ताकि स्कैव,चार
कोल गलन तथा काला कोढ़ से फसल को बचाव हो सके | साथियों अगर मिटटी पोटेटो रिजर से चढ़ानी हो तो
खाद डालने वाली मशीन से कतार पर सतह से 5 सेटीमीटर नीचे खाद डालें | खाद पोरे से भी डाल सकते हैं खाद डालने के बाद
सुहागा लगा दें ताकि खाद के ऊपर मिटटी आ जाए | फिर इन कतारों में उचित फासले पर
आलू बीज रखकर ट्रेक्टर या बैलों वाले रिजर `से हल्की मिटटी चढ़ा दें | हाँ अगर आलू
कस्सी या खुरपे से लगाने हो तो कतार के दोनों ओर 4-5 सेटीमीटर की दूरी पर खाद
डालकर तथा कतारों पर आलू बीज रखकर हल्की मिटटी चढ़ा दें | बीज को गलने से बचाने के
बाद डोलियों को जमाव होने तक धान या मक्की की कडवी से जरुर ढक दें | फसल में पहला
पानी 7 से 10 दिन के बीच लगायें | नवम्बर माह तक 7 से 10 दिन के अन्तर पर एवं दिसम्बर से
जनवरी तक 10-15 दिन के अंतर पर सिंचाई करें | ध्यान रखें नालियों में डोलियों की
आधी ऊंचाई तक ही पानी लगायें |
किसान भाइयों आलू की
गुणवत्ता व अधिक उपज के लिए फव्वारा सिंचाई बहुत कारगर रहती है यदि आपके पास फव्वारा सैट है तो सितम्बर से नवम्बर तक तीन
दिन के अन्तराल पर 2 घंटे प्रतिदिन,दिसम्बर से जनवरी तक 4 दिन के अन्तराल तथा
फरवरी से आलू की खुदाई के 15 दिन पहले तक 5 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहें | बुवाई
के 25-30 दिन बाद सिंचाई उपरांत निराई गुड़ाई करें खरपतवार निकालें तथा पौधों की
जड़ों पर मिटटी चढ़ा दें ताकि बनने आलू धूप लगने के कारण हरे न हो सके | यदि कर्षण
क्रिया और तथा निराई गुड़ाई द्वारा खरपतवार नहीं निकाल सकते तो बुवाई के 10 दिन के
भीतर 1 से 1.20 किलोग्राम एलाक्लोर या 480 से 600 ग्राम पेंडीमैथलीन को 200-250
लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें | साथियों अगेते आलू की बुवाई की खुदाई
के समय यह धान रखे कि ये आलू कच्चे व इनके
डंठल भी हरे होते हैं इसलिए सावधानी पूर्वक खोदकर साफ कर लें और तुरंत ही इनकी ग्रेडिंग
करके बाजार भेज दें क्योंकि इन्हें अधिक दिनों तक भंडारित नहीं किया जा सकता | आलू
की खुदाई पोटेटो डिगर या कस्सी व खुरपे से जैसी भी सुविधा उपलब्ध हो कर सकते हैं |
यदि फसल के पकने
के बाद आलू की खुदाई की जाती है तो खुदाई से 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें |
खुदाई के बाद कटे-फटे,हरे व बदशक्ल आलुओं को अलग कर दें | तथा साफ आलुओं को किसी
कमरे में इक्कठा करके अच्छी तरह ढक दें ताकि ये हरे न हो जाएँ यदि तामपान 20
डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाए तो आलू के ढेर पर हल्का पानी छिडकें या कूलर चलायें
ताकि तामपान व आर्द्रता दोनों की पूर्ति हो सके | इस प्रकिया से 3-4 माह तक ही आलू
घर पर रखे जा सकते है इसके बाद आलुओं की सफाई व ग्रेडिंग करके व बोरियों में भरकर
शीतग्रह में रखें | आलुओं को काला कोढ़ व स्कैब आदि रोगों से बचाने के लिए 3
प्रतिशत बोरिक एसिड वाले घोल में आधा घंटे तक डुबोकर उपचारित भी कर सकते हैं | शीतग्रह में आलू के लिए तामपान और नमी की सबसे
अच्छी अवस्था 0 से 4 डिग्री सेल्सियस तामपान और 75 से 80 प्रतिशत अपेक्षित
आर्द्रता है | आपने देखा होगा आलू में तेला व चेपा कीट के शिशु व प्रोढ़ कोमल
पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं जिससे पत्तियां मुड़ कर
पीली पड़ जाती हैं | चेपा तो विषाणु रोग भी
फैलाता है | इन दोनों कीटों का आक्रमण होने पर 300 मिलीलीटर रोगोर 30 ई.सी को
200-250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ स्प्रे करना चाहिए जरूरत पड़ने पर 10-15 दिन
बाद पुन: स्प्रे करें |
किसान भाइयों
आलू की गुणवत्ता तथा उपज में कमी होने का विशेष कारण आलू में लगने वाली बीमारियाँ
है जैसे अगेती अंगमारी रोग में पतों के किनारों पर तथा ऊपरी तरफ भूरे धब्बे फैले
दिखाई देते हैं | जो बाद में काले भूरे व गोलाकार हो जाते है | इनसे कभी-कभी
टहनियां अथवा पूरा पौधा सूखकर गिर जाता है | इसी प्रकार पछेती अंगमारी रोग में पतों के ऊपर काले
चक्कते बनकर कन्द भी ख़राब होने के कारण फसल तैयार होने से पहले ही नष्ट हो जाती है
| इन दोनों बीमारियों के लक्षण दिखाई देने पर 600 से 800 ग्राम इंडोफिल-M 45 को
200 लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अन्तर पर प्रति एकड़ 3-4 छिड़काव करें |साथियों
आलू की फसल को काला कोढ़, चारकोल गलन तथा स्कैब बीज नामक बीमारियों से बचाने के लिए
बीजोपचार ही एक सस्ता व सरल उपाय है अत: पहले बताये गये बीजोपचार का पालन जरुर करें तथा बीज भी किसी भरोसेमंद संस्था से ही खरीदें |
किसान
भाइयों यदि आप चाहते हैं कि खेती में लगने वाले कीड़ों तथा बीमारियों का नियंत्रण
जैविक-वनस्पतिक ढंग से किया जाए तो आप सृष्टी इनोवेशन अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित
पत्रिका “फसलों की रक्षा बिना जहर के” में प्रकाशित तथा श्री नारायण भाई बिट्ठल
भाई पटेल निवासी ग्राम-माजरा,तहसील प्रातिज जिला सावरकांठा गुजरात द्वारा आजमाये
गये इस नुस्खे को आजमा सकते हैं | इस
नुस्खे के अनुसार बैंगन की फसल में फल बनते समय हर पौधे की जड़ में 10 मिलीलीटर
अरण्डी का तेल डालने से फसल में दीमक नही लगती तथा बैंगन के फल भी सुंदर व चमकदार
रहते हैं |
जो किसान भाई जैविक ढंग से
कीड़ों व बीमारियों का निदान करना चाहते हैं | वे हमारे
किसान संचार कार्यालय के टेलीफ़ोन नंबर जीरो सत्तरह बासठ दौ सौ सत्तर दौ सौ पांच एक बार फिर सुनिये जीरो सत्तरह बासठ
दौ सौ सत्तर दौ सौ पांच पर सोमवार से शनिवार सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक बात करके जानकारी प्राप्त कर सकते
है |
No comments:
Post a Comment