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Thursday, November 26, 2015

टमाटर की खेती /Tomato cultivation



टमाटर की खेती

किसान भाईयों ! आज हम किसान संचार जीरकपुर निकट चंडीगढ़ के सौजन्य से आपको टमाटर की खेती करके अपनी आय बढ़ाने के बारे में बताने का प्रयास कर रहे हैं |
साथियों ! भोजन में प्रतिदिन व् बारहों महीने प्रयोग के कारण टमाटर एक महत्वपूर्ण  फसल है इसका उपयोग,सब्जी,शलाद,चटनी व् अन्य कई तरह के उत्पादों के रूप में होता है | खनिज  लवणों,विटामिन्स तथा आर्गेनिक अम्लों का विशेष स्रोत है  टमाटर | टमाटर की प्रति 100 ग्राम मात्रा में  3-4 प्रतिशत शक्कर,4-7 प्रतिशत कुल ठोस,15-30 मिली ग्राम एसकार्बिक एसिड,7.5 से 10 मिलीग्राम  टाईट्रेटेबिल अम्लता और 20 से 25 मिलीग्राम लाईकोपीन मिलता है | टमाटर गरम मौसम की फसल है किन्तु ठन्डे मौसम में भी इसकी व्यापक रूप से खेती की जाती है | 15 से 27 डिग्री सेल्सियस तामपान टमाटर की खेती के लिए अच्छा रहता है | इससे कम या अधिक तापमान में बीजों का कम जमाव पौधों  का  कम विकास,फूल गिरने तथा फल कम बनने जैसी  परेशानी उत्पन्न हो जाती हैं | वैसे तो टमाटर अच्छे जल निकास वाली सभी भूमियों में उगाया जा सकता है | किन्तु वलुई दोमट से लेकर चिकनी काली और लाल भूमियाँ इसकी खेती के लिए अच्छी रहती है | कार्बनिक पदार्थ से भरपूर वलुई दोमट मिटटी जिसमें जल निकास का उचित प्रबंध हो तथा पी.एच मान 7 से 8.5 हो आदर्श मिटटी मानी जाती है |
     देश में टमाटर की अनेके किस्में व् संकर किस्में विकसित की जा चुकी हैं | मध्य भारत उत्तर पूर्वी व् उत्तर पश्चिमी मैदानों के लिए उपयुक्त किस्में इस प्रकार हैं |
किस्में:-
1.HS-101:- इसके पौधे छोटे, फल मध्यम आकार के गोल,लाल व गुच्छों में लगते है यह किस्म लीफ कर्ल वायरस के प्रति सहनशील है और उत्तर भारत के लिए उपयुक्त है |
2.HS-102 :-  यह अधिक अगेती गुच्छेदर फलों वाली किस्म है | फल मध्यम से छोटे आकार वाले गोल रसीले और बारीक छिलका वाले होते हैं | यह किस्म पंजाब हरियाणा और उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त है 
3.हिसार अनमोल :- इसके फल लाल मध्यम आकार के गोल व कम रशीले होते हैं यह किस्म लीफ कर्ल वायरस के लिए प्रतिरोधी है | पंजाब,हरियाणा उत्तरप्रदेश के लिए उपयुक्त है |
4.हिसार लालिमा :- यह अगेती किस्म है फल गोल, बड़े,गूदेदार व लाल होते हैं | यह भी उत्तरप्रदेश व् हरियाणा के लिए अच्छी है |
5.हिसार अरुण :- बहुत अगेती अधिक उपज देने वाली किस्म है | पौधे छोटे,फल मध्यम से बड़े आकार के गहरे लाल होते है | यह दिल्ली हरियाणा उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र के लिए उपयुक्त है |
6.कृष्णा :अगेती पकने वाली उच्च उत्पादन वाली संकर किस्म है | इसके फल गोल बड़े गहरे व लाल तथा दूरस्थ स्थानों पर भेजने योग्य होते हैं |
7.पंजाब छुआरा :- इसके फल आडू के आकार के बीज रहित,लाल मोटे छिलके ,गूदेदार होते हैं जो तुड़ाई के एक सप्ताह बाद भी मंडी भेजे जा सकते हैं | यह किस्म पंजाब व् उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त है |
8.पूसा हाईब्रिड -2:- अधिक उपज वाली अगेती पकने वाली और दूरस्थ स्थानों पर भेजने योग्य संकर है | फल मध्यम आकार के गोल,गहरे लाल होते हैं |
9.संकर:- यह भी अगेती और अधिक उपज देने वाली तथा दूर तक भेजने योग्य संकर किस्म है | फल मध्यम आकार के पकने पर गहरे लाल और गुच्छे दार होते हैं |
नर्सरी लगाने का समय :- पौध तैयार करने हेतु शरदकालीन फसल के लिए टमाटर की नर्सरी बोने का समय जून-जुलाई तथा बसंत कालीन फसल के लिए नवम्बर से दिसम्बर का समय ठीक रहता है |
बीज की मात्रा :- शरदकालीन फसल के लिए 400-500 ग्राम बीज तथा बसंतकालीन फसल के लिए लगभग 200 ग्राम बीज एक एकड़ की पौधे तैयार करने के लिए पर्याप्त रहता है |
नर्सरी तैयार करना :- वर्षा ऋतु में 3 मीटर लम्बी व् 1 मीटर चौड़ी किन्तु उठी हुई लगभग 40 क्यारियों बनायें तथा बसंतकालीन  फसल के लिए ऐसी 15-20 क्यारियां पर्याप्त रहेंगी | टमाटर के बीज को 2.5  ग्राम  कैप्टान या थीरम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोयें | बीज बोने के बाद क्यारियों को गोबर की सड़ी खाद की पतली परत से ढक कर फव्वारे से सिंचाई कर दें | धूप से बचाव के लिए जमाव होने तक क्यारियों को घास फूंस आदि से ढक कर रखे |  आर्द्र गलन रोग लगे तो जमाव होने के बाद 2 ग्राम कैप्टान प्रति लीटर पानी की दर से नर्सरी का उपचार करें | नर्सरी से खरपतवार निकालने व समय पर सिंचाई का ध्यान रखें | वर्षा ऋतु में 4 सप्ताह तथा शरद ऋतु में 8 से 10 सप्ताह में पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है |
खाद व उर्वरक :- पौध रोपण हेतु खेत में 10 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट डाल कर खेत तैयार करें | तैयारी के समय 30 किलोग्राम यूरिया 150 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 35 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश को प्रति एकड़ मिटटी में मिला दें | 30 किलोग्राम यूरिया पौध रोपाई के एक माह बाद तथा 30 किलोग्राम यूरिया रोपाई के 2 माह बाद फसल में बुरका दें |
सिंचाई :- पहली सिंचाई रोपाई करते ही तथा बाद में 8 से 10 दिनों के अंतर से सिंचाई करें | टमाटर पकते समय सिंचाई कम व हल्की करें |
खरपतवार नियंत्रण :- रोपाई के 20 से 25 दिन बाद तथा रोपाई के 40 से 45 दिन बाद निराई गुड़ाई करके फसल से खरपतवार निकालें | यदि पहले से ही खेत में खरपतवार अधिक उगते हैं तो पौध रोपाई के 4 से 5 दिन बाद 400 ग्राम पैंडीमैथलीन को 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ मिटटी पर स्प्रे कर दें |
फलों का फटना :- टमाटर के फलों को फटने से रोकने के लिए 600 ग्राम बोरेक्स को 250 लीटर पानी में घोलकर 15 दिनों के फांसले से फल लगने के बाद स्प्रे करें | आवश्यक हो तो तीसरा छिड़काव फल पकते समय करें |
फलों को तोडना :- फलों की बढ़वार पूरी हो जाय,उनपर लाल पीले रंग की धारियां दिखने लगें तब फलों की तुड़ाई करें | अध पके फलों को तोड़कर दूर की मण्डियों में भी भेजा जा सकता है |
कीट नियंत्रण :-
1.सफ़ेद मक्खी:- यह एक हल्का-पीला छोटा कीट है इसके शिशु व प्रोढ़ पत्तों की निचली सतह से रस चूसते हैं | पत्ते पीले हो जाते हैं | यह कीट मरोडिया रोग भी फैलाता है | इसका आक्रमण होने पर 400 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ई.सी को 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ स्प्रे करें |
2.फल छेदक सुंडी :- यह हरे या पीले भूरे रंग की सुंडी है | इसके शरीर पर तीन लम्बी कटवा सलेटी रंग की दोनों और सफ़ेद धारियां होती है  | यह कोमल पत्तियां खाती है तथा कलियों फूलों व् फलों में सुराख़ कर देती है |
     इस कीट का प्रकोप होने पर 75 मिलीलीटर फैनवेलरेट 20 ई.सी या 200 मिलीलीटर डेल्टामैथरीन 2.8 ई.सी या 150 मिलीलीटर साइपरमैथरीन 10 ई.सी को 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ स्प्रे करें| इसके 10 से 12 दिन बाद 500 ग्राम कार्बेरिल 50 प्रतिशत घुलनशील पाउडर  को 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ स्प्रे करें |
रोग नियंत्रण :-
आर्द्र गलन रोग :- यह टमाटर की नर्सरी का गंभीर रोग है | जिसके कारण पौधे अंकुरण के साथ ही और बाद में भी मर जाते है |
नर्सरी में इस रोग की रोकथाम के लिए पहले बताया जा चुका बीज उपचार करें तथा पौध उगने के बाद पौधों को गिरने से बचाने के लिए 2 ग्राम कैप्टान प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर नर्सरी की सिंचाई करें |
2. अगेता झुलसा रोग :- इस रोग के कारण पत्तों व् फलों पर गहरे भूरे या काले दाग पड़ते हैं | तनों पर पहले अंडाकार फिर वेलनाकार धब्बे बन जाते है | जिसकी वजह से पौधे सूख जाते हैं | इसकी रोकथाम के लिए 400 ग्राम इंडोफिल एम-45 को 250 लीटर पानी में घोलकर 10 से 15 दिन के फासले पर प्रति एकड़ छिड़काव करना चाहिए |

3.जड़गांठ सूत्रकृमि :- इस सूत्र कृमि से ग्रस्त पौधे पीले पड़ जाते है | पौधो की बढ़वार रुक जाती है | पौधों की जड़ों में गांठे बनती है और जड़ें फूल जाती है | इसकी रोकथाम के लिए कार्बोफ्युरान के 7 ग्राम दाने प्रति वर्ग मीटर नर्सरी की मिटटी में मिलायें या ऐसे खेतों में टमाटर की हिसार ललित किस्म लगायें |

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