Total Pageviews

Monday, November 14, 2016

कद्दूवर्गीय सब्जियों से ले मुनाफा

हरियाणा में घीया,तोरी,लौकी कद्दू टिंडा,करेला,पेठा,खीरा ककड़ी,खरबूजा तरबूज आदि बेल वाली सब्जियों की खेती की जाती है | बेल वाली सब्जियों में बिमारियों के कारण काफी नुकसान होता है | इसलिए किसानों को इन सब्जियों की खेती से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा लेने के लिए इनमें नुकसान पहुँचाने वाली बीमारियों का पूरा ज्ञान होना चाहिए |
चूर्णी फफूंदी :- इस रोग से प्रभावित पौधों के पत्तों,तनों और दुसरे भागों पर फफूंदी की तह जम जाती है | जिसके कारण पत्तियां पीली पड़ कर सुख जाती है पौधों की वृद्धि रुक जाती है | तथा पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है फलों का गुण एवं स्वाद भी ख़राब हो जाता है यह रोग खुश्क मौसम में ज्यादा लगता है |
रोकथाम:- 8-10 किलोग्राम बारीक गंधक प्रति एकड़ का धूड़ा बीमारी लगे हर भाग पर धुड़ने से बीमारी रुक जाती है | धुड़े के स्थान पर 500 गरम घुलनशील गंधक 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ के हिसाब से छिडकाव कर सके है |
विशेष सुझाव :- धूड़ा सुबह या शाम के समय करें | अधिक गर्मी के समय धूड़ा न करें |
गंधक खरबूजे पर कभी न धुड़े |
खेत में खरपतवार बिल्कुल न रहने दे |
मृदारोमिल फफूंदी :-
पत्तों की ऊपरी सतह  पर पीले अथवा नारंगी रंग के कोणदार धब्बे बनते है | जो कि शिराओं के बीच सिमित रहते है | प्रकोप बढ़ने पर पत्ते सूख जाते है और पौधे नष्ट हो जाते है |
रोकथाम:- पौधों पर दो ग्राम इन्डोफिल एम-45 या ब्लाइटाक्स-50 प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें |
विशेष सुझाव :-
खरबूजे पर ब्लाइटाक्स-50 का स्प्रे ना करें |
खेत में लौकी जाति के खरपतवारों को नष्ट कर दें |
एक एकड़ में 200 लीटर पानी अवश्य प्रयोग करें |                    
स्कैब :- इस रोग के कारण बेल वाली सब्जियों के पत्तों व फलों पर धब्बे पड़ जाते हैं और अधिक नमी वाले मौसम में इन धब्बों पर गोंद जैसा पदार्थ दिखाई देता है |
रोकथाम:- पौधों पर 400 ग्राम इंडोफिल एम-45 200 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करने से यह बीमारी रोकी जा सकती है |
गम्मी कालर रोट :- यह समस्या विशेषकर खरबूजे में प्राय: अप्रैल-मई में देखने में आती है | इस रोग के प्रभाव से भूमि की सतह पर तना पीला पड़कर फटने लगता हा और फाटे हुए स्थानों से गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलने लगता है |
रोकथाम:- प्रभावित पौधों के टनों की भूमि की सतह के पास एक ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर सिंचाई करें |
मौजेक रोग:- मौजेक विषाणु से होने वाला रोग है | इसलिए इसे विषाणु रोग भी कहते हैं इस रोग से प्रभावित पौधों के पत्ते पीले व कहीं-कहीं से हरे नजर आते हैं | प्रभावित प[ओउधों में फल छोटे बनते है और पैदावार बहुत ही कम मिलती है |
रोकथाम:- मौजक रोग अल (चेपा) द्वारा फैलता है | चेपा को नष्ट करने के लिए कीटनाशक दवाओं जैसे कि 250 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ई.सी को 200-250 लीटर पानी में मिलाकर नियमित रूप से दस दिन के अंतराल पर छिड़काव करें |
विशेष सुझाव:- रोग रोधी किस्में उगाएं |
रोगी पौधों को उखाड़ कर जला दें |
खेत में खरपतवार बिल्कुल न रहने दें |
चेपा का फसल उगते ही निरीक्षण करते रहें ताकि उचित समय पर रोकथाम व कार्यवाही की जा सके |

कद्दूवर्गीय सब्जियों के बारे में जानने के लिए निचे दिए गए विडियो के लिंक पर क्लिक करें |
Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=7rZGss31bVc



   

No comments:

Post a Comment