हरियाणा में घीया,तोरी,लौकी कद्दू टिंडा,करेला,पेठा,खीरा ककड़ी,खरबूजा तरबूज आदि बेल वाली
सब्जियों की खेती की जाती है | बेल वाली सब्जियों में बिमारियों के कारण काफी
नुकसान होता है | इसलिए किसानों को इन सब्जियों की खेती से ज्यादा से ज्यादा
मुनाफा लेने के लिए इनमें नुकसान पहुँचाने वाली बीमारियों का पूरा ज्ञान होना
चाहिए |
चूर्णी फफूंदी :- इस रोग से प्रभावित पौधों के पत्तों,तनों और दुसरे भागों
पर फफूंदी की तह जम जाती है | जिसके कारण पत्तियां पीली पड़ कर सुख जाती है पौधों
की वृद्धि रुक जाती है | तथा पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है फलों का गुण एवं
स्वाद भी ख़राब हो जाता है यह रोग खुश्क मौसम में ज्यादा लगता है |
रोकथाम:- 8-10 किलोग्राम बारीक गंधक
प्रति एकड़ का धूड़ा बीमारी लगे हर भाग पर धुड़ने से बीमारी रुक जाती है | धुड़े के
स्थान पर 500 गरम घुलनशील गंधक 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ के हिसाब से छिडकाव कर
सके है |
विशेष सुझाव :- धूड़ा
सुबह या शाम के समय करें | अधिक गर्मी के समय धूड़ा न करें |
गंधक
खरबूजे पर कभी न धुड़े |
खेत में
खरपतवार बिल्कुल न रहने दे |
मृदारोमिल फफूंदी :-
पत्तों
की ऊपरी सतह पर पीले अथवा नारंगी रंग के कोणदार
धब्बे बनते है | जो कि शिराओं के बीच सिमित रहते है | प्रकोप बढ़ने पर पत्ते सूख
जाते है और पौधे नष्ट हो जाते है |
रोकथाम:-
पौधों पर दो ग्राम इन्डोफिल एम-45 या ब्लाइटाक्स-50 प्रति लीटर पानी में घोलकर
छिड़काव करें |
विशेष सुझाव :-
खरबूजे
पर ब्लाइटाक्स-50 का स्प्रे ना करें |
खेत में
लौकी जाति के खरपतवारों को नष्ट कर दें |
एक एकड़
में 200 लीटर पानी अवश्य प्रयोग करें |
स्कैब
:- इस रोग के कारण बेल वाली सब्जियों के पत्तों व फलों पर धब्बे पड़ जाते हैं
और अधिक नमी वाले मौसम में इन धब्बों पर गोंद जैसा पदार्थ दिखाई देता है |
रोकथाम:- पौधों पर 400 ग्राम इंडोफिल एम-45 200 लीटर पानी में घोलकर
छिडकाव करने से यह बीमारी रोकी जा सकती है |
गम्मी
कालर रोट :- यह समस्या विशेषकर खरबूजे
में प्राय: अप्रैल-मई में देखने में आती है | इस रोग के प्रभाव से भूमि की सतह पर
तना पीला पड़कर फटने लगता हा और फाटे हुए स्थानों से गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ
निकलने लगता है |
रोकथाम:- प्रभावित पौधों के टनों की भूमि की सतह के पास एक ग्राम
कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर सिंचाई करें |
मौजेक
रोग:- मौजेक विषाणु से होने वाला रोग है | इसलिए इसे
विषाणु रोग भी कहते हैं इस रोग से प्रभावित पौधों के पत्ते पीले व कहीं-कहीं से
हरे नजर आते हैं | प्रभावित प[ओउधों में फल छोटे बनते है और पैदावार बहुत ही कम
मिलती है |
रोकथाम:- मौजक रोग अल (चेपा) द्वारा फैलता है | चेपा को नष्ट करने
के लिए कीटनाशक दवाओं जैसे कि 250 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ई.सी को 200-250 लीटर पानी में मिलाकर नियमित
रूप से दस दिन के अंतराल पर छिड़काव करें |
विशेष
सुझाव:- रोग रोधी किस्में उगाएं |
रोगी
पौधों को उखाड़ कर जला दें |
खेत में
खरपतवार बिल्कुल न रहने दें |
चेपा का
फसल उगते ही निरीक्षण करते रहें ताकि उचित समय पर रोकथाम व कार्यवाही की जा सके |
कद्दूवर्गीय सब्जियों के बारे में जानने के लिए निचे दिए गए विडियो के लिंक पर क्लिक करें |
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