जलवायु
परिवर्तन के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए बेमौसमी फसल लेने के लिए तथा बढ़ती हुई
आबादी की खाद्यन्न आपूर्ति को नजर में अखते हुई विभिन्न फसलों के उत्पादन के लिए
पॉलीहाउस विधि को तैयार किया गया | हरियाणा में पॉलीहाउस में किसान मुख्यत
टमाटर,शिमला मिर्च,खीरा,गुलाब आदिकी खेती कर रहे है | पॉलीहाउस का वातावरण पौधों
की बढ़ोतरी के साथ-साथ इसमें लगने वाले कीड़ों के प्रजनन के लिए भी अनुकूल होता है
और कम समय में अधिक संख्या में बढ़कर फसलों को नुकसान पहुंचाते है | प्राय: देखा
गया है कि जो किसान इनका उचित रख-रखाव करते है,उनमें कीट समस्या कम आती है |
पॉलीहाउस की फसलों में मुख्यतः सेफ मक्खी,तेला,माइट,मिलीबग,व सुंडी नुकसान पहुंचती
है अत: इस लेख में कीटों व इनके समन्वित प्रबंधन के बारे में जानकारी दी जा रही है
|
पॉलीहाउस फसलों के कीट एवं उनका समन्वित प्रबंधन के बारे में जानने के लिए निचे दिए गए विडियो के लिंक पर क्लिक करें |
सफ़ेद
मक्खी:- इस कीट के सफ़ेद रंग के
वयस्क व पतली झिल्लीनुमा शिशु पत्तों की निचली सतह से रस चूसते हैं जिसके कारण
पत्ते पीले पद जाते है और सुख जाते है यह कीट पत्तों पर चिपचिपा पदार्थ भी छोड़ते
है जिस पर काली फफूंदी लगबे से पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया कम हो जाती है|
तेला:- इस कीट के हरे पीले रंग के शिशु व
प्रौढ़ कोमल पतियों,शाखाओं व फलों से चिपके रहते है और ज्यादातर समूह में रहकर रस
चूसते है | फलस्वरूप पत्तियां मुड़कर पीली हो जाती और सुख जाती है | इनके द्वारा
छोड़े हुए चिपचिपे पदार्थ पर काली फफूंदी लगने से पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रय पर
बोरा प्रभाव पड़ता है | इसका अधिक प्रकोप होने पर पत्ते मुद जाते है | और पौधों का
विकास रुक जाता है |
अष्टपदियां
:- पॉलीहाउस फसलों में
मुख्यतः लाल,पीली माइट का प्रकोप लगभग सभी फसलों पर होता है | पीली माइट का प्रकोप
शिमला मिर्च में पाया जाता है | हरियाणा में पॉलीहाउस फसलों में लाल माइट प्रमुख
है | इसका प्रको गर्म व शुष्क वातावरण में अधिक होता है | इसके शिशु व वयस्क
पत्तों व अन्य कोमल भागों से रस चूसते है |
थ्रिप्स:-
उज एक सर्वभक्षीय कीट है | इसके पीले-भूरे बेलन आकार के शिशु व प्रौढ़ पत्तों से रस
चूसते है ग्रस्त पत्तियों मुड़ जाती है | प्रको अधिक होने पर छोटी पर पत्ते तांबे
जैसे होकर सूख जाते है | पौधों का विकास पूरी तरह से रुक जाता है |
मिलीबग:- यह कीट छोटे आकार का होता है और
उनका शरीर सफ़ेद मोमी रुई से ढका होता है | इसके शिशु एवं व्यस्क दोनों समूह में
रहकर नई कोपलों,पत्तों एवं पौधों के अन्य भागों से रस चूसते है पौधों को कमजोर कर
दी है पत्ते पीले पड़ जाते है और पौधे मुरझा जाते है | ये क चिपचिपे तरल पदार्थ को
भी प्रचुर मात्रा में निकालते है जो की पौधों के पत्तों व अन्य भागों पर गिरता है
|
पर्णखनिक
कीट:- इस कीट की मादा पत्तों
के अंदर अन्डे देती है | अण्डों से निकले शिशु अत्तों के ऊपरी व निचली सतह के बीच
टेढ़ी-मेढ़ी सफ़ेद सुरगें बनाकर हरे पदार्थ को नष्ट कर देते है | जिस कारण पौधों की
संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है |
सुंडिया:-
ये कीट पत्तों की निचली सतह पर समूह में अन्डे देते है जिनमें से गहरे रंग की
सुंडिया निकलती है जो शुरू की अवस्था में इकट्ठी रहती हैं तथा बड़े होने पर पत्तों
को पूरी तरह नष्ट कर देती है |
समन्वित
कीट प्रबंधन:-
पॉलीहाउस
के बहार का क्षेत्र खरपतवार मुक्त रखें |
कीट
रहित पौधों को ही पॉलीहाउस में लगाएं|
पॉलीहाउस
में दो दरवाजे लगाएं|
कीट
व जाली का समय-समय पर उचित रख रखाव करें |
किसी
भी जगह जाली फटी हुई हो तो उसे ठीक करें जिससे कीट-पंतगे अंदर न जा सके |
किसी
भी रासायनिक कीटनाशी का लगातार प्रयोग न करें |
फसल
पर कीटनाशक दवाई के छिडकाव और फल तुड़ाई में कम से कम सैट दिनों का अंतर अवश्य रखे
|
कीट-पंतगे
को पनपने से रोकने के लिए पॉलीहाउस में क्रमिक खेती न करें |
Video Link:-https://www.youtube.com/watch?v=gSlbBkf7Blc
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